ठीक तुम्हारे पीछे [Theek Tumhare Peechhe]

  1. home
  2. Books
  3. ठीक तुम्हारे पीछे [Theek Tumhare Peechhe]

ठीक तुम्हारे पीछे [Theek Tumhare Peechhe]

4.13 688 86
Share:

बहुत सारे कोरे पन्नों के बीच मैंने बहुत सारा ख़ाली वक़्त...

Also Available in:

  • Amazon
  • Audible
  • Barnes & Noble
  • AbeBooks
  • Kobo

More Details

बहुत सारे कोरे पन्नों के बीच मैंने बहुत सारा ख़ाली वक़्त बिताया है। नाटक और कविताएँ लिखने के बीच बहुत सारा कुछ था जो अनकहा रह जाता था.. कहानियाँ मेरे पास कुछ इस तरह आईं कि मेरी कविताएँ और नाटक सभी पढ़ और देख रहे थे, कहानियाँ लिखना कोई बहुत अपने से संवाद जैसा हो गया था। मैं बार-बार उस अपने के पास जाने लगा.. मैं जब भी कहानी लिखता मुझे लगता यह असल में सुस्ताने का वक़्त है.. इन सुस्ताती बातों में कब कहानियों की एक पोटली-सी बन गई पता ही नहीं चला। मैंने कभी नहीं सोचा था कि यह अपने से खुसफुसाते हुए बहुत निजी संवाद एक दिन सबके हाथों में पहुँच सकते हैं। चूकि मैं दृश्य में सोचता हूँ तो मेरी कहानियाँ एक दृश्य से दूसरे दृश्य की यात्रा-सी सुनाई देती हैं। नाटक लिखते रहने से कहानियों में एक नाटकीयता भी बनी रहती है। मैं कभी बहुत सोचकर नहीं लिखता हूँ और मैंने कभी अपने लिखे में काट-छाँट नहीं की है... कहानियाँ विचारों की निरंतरता में बहना जैसी हैं.. इसमें जो जैसा आता गया मैं उसे वैसा-का-वैसा छापता गया। कई कहानियाँ मुझे लंबी कविता-सी लगती हैं तो कई नाटक... इन सबमें ‘प्रयोग’ शब्द बहुत महत्वपूर्ण है।

  • Format:
  • Pages:192 pages
  • Publication:
  • Publisher:
  • Edition:
  • Language:hin
  • ISBN10:9384419400
  • ISBN13:9789384419400
  • kindle Asin:B01MQ0T1CW

About Author

Manav Kaul

Manav Kaul

4.18 5032 752
View All Books

Related BooksYou May Also Like

View All